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Why mother's day in india ?भारत का सांस्कृतिक पतन । indian youth

 भारत का मानसिक पाश्चात्य औपनिवेशिकता

*कोई राष्ट्र तब तक पराजित नही होता जब तक वो अपनी संस्कृति और जीवनमुल्यो कि रक्षा कर पाता है* परंतु जो राष्ट्र अपनी संस्कृति पर गौरवाविंत भले होता हो यदि वो अपने जीवन मे उसे यथास्थान नही दे पाता हो क्या वो राष्ट्र विश्वगुरू बन पायेगा ? 
हर कोई न कोई दिन कोई day होता है जिसको मनाने के पीछे कारण पता नही होता है पर हम मना लेते है ।
बात *mother's day* कि है यूरोपीय देशो मे परपंरा रही है कि मां अपने बच्चे को नही पालती है उनका लालन पालन तो कोनवेंट स्कूल मे होता है इसलिये साल मे एक दिन वो *mothers day* मनाते है *fathers day* जिस दिन बेटा पिता के साथ बैठकर खाना खाता है जबकी यहां कि संस्कृति मे तो पिता अपने हाथो से खाना खिलाता है । पहली बात तो आपने mother's day father's day अलग अलग करके मां बाप को ही बांट दिया । पूरे विश्व मे यही एक मात्र देश होगा यही एक मात्र संस्कृति होगी जहां माता पिता को भगवान से बढ़कर माना जाता हो जहां कहा जाता हो *जननी जन्मभूमी स्वर्गोदपि गरियसी* अन्यथा दुनिया तो  हुरो, हैवन को ही जीवन का परम लक्ष्य मानती है । जो राष्ट्र  धरती को भी मां मानता हो वो किसी एक दिन मदर्स डे कैसे मना सकता है ?
फिर यदि एक दिन याद ही करना हो तो तुम्हारे पास राष्ट्र नायक नही है ? तुम्हारे पास कोई उपलक्ष नही है ?
संपूर्ण विश्व मे झांसी की रानी, रानी पदमावती, कर्णावती ,पन्नाधाय... जैसै  कोई मातृ शक्ति के उदाहरण मिल सकते है ? ये देश बस चचा नेहरू के जन्मदिन पर बाल दिवस मना सकता है । 
_जिन्होने इस धरती पर सबसे अधिक संसाधनो का दोहन और मानवता के विनाश मे उपभोग किया_ आज उनके कहने पर हम *पर्यावरण दिवस* मनाते है बहोत हि शर्म कि बात है । पूरे विश्व के इतिहास मे इमरती बाई जैसा कोई पर्यावरण के लिये बलिदान हुआ हो मुझे नही लगता इनके सम्मान मे पर्यावरण दिवस मनाया जाय !
जरा सोचिये आप स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस को youth day मनाते हो आप शहिद दिवस मनाते हो यूरोप तो छोडिये कोई एशिया का देश मनाता है ? 
आप engineer day (विश्वेश्वरय्या )मनाते हो आप math day ( रामानुजन जयंति ) मनाते हो क्या कोई दुसरा देश मनाता है ? 
*यदि इस बात से आपको कोई फर्क नही पडता तो आपके अंदर  स्वाभिमान मर चुका है ।* 
कई सरकारे आई कई गई लेकिन किसी ने राष्ट्रीय गौरव को जनमानस मे प्रेरणाभाव जगाने का काम नही किया । हमे हमारे संस्कृति हमारे महापुरूषो से ज्यादा प्रिय पाश्चात्य संस्कृति त्यौहार उत्सव है । 
जिस राष्ट्र का अनुसरण संपूर्ण विश्व करता था आज वो स्वयं युरोप का अनुसरण करता है ... अब यदि वो राष्ट्र विश्वगुरू होने का सपना देखता हो तो इससे बडी विडंबना क्या होगी ?
कुछ लोग अब मुझे पुरानी सोच वाला रुढिवादी तक समझेंगे और इस बात से क्या फर्क पडता है जब उनको भारतीय होने से कोई फर्क नही पडता ।
जय हिंद *भारत माता कि जय*

लेखक- कुंवर पुष्पेन्द्र सिंह सुरेरा 

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