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Mushafir poetry

 मेरी अनूभुति

बाहर से पुछा मैने, की मै कौन हुँ ?

जवाब अन्दर से आया -मुसाफिर

तो बता के मेरी- मंजिल क्या है ?

जवाब फौरन आता है - मौत

जवाब सुन दंग मै रह गया

पुछने को फिर मजबुर हो गया

जरा बता हमे - रास्ता क्या है ?

जवाब आया - जिंदगी 

इस जवाब ने मेरा एक सवाल कम कर दिया

मै मुसाफिर,मजिंल है मौत,रास्ता है जिन्दगी

तो चलना तो है,मगर रास्ता कैसा है

जवाब इतना जल्दी था के मानो मेरा अन्दर सब जानता था

 अन्दर कोई कशमकश न थी

जवाब था आसान

इससे पहले जहन मे उलझन न थी

जो देखा ,जो सुना जो महसुस किया

वो तो बिलकुल उलट था

दुनिया की किताब मे जिन्दगी आसान न थी

जिन्दगी मुश्किल तो रास्ता बेशक सही नही

चल रहे है जिस राह पर  मंजिल  कही नही

बाते सुन के सवाल समझ गया मन

जवाब आया रास्ता सही नही

सिल सिला यही न रूका ,

पुछा मैने के-दुनिया जिस राह पर

जवाब वही था वो रास्ता भी सही नही

अब मेरा बाहर भी जवाब दे रहा था

अन्दर बाहर मे कोई मतभेद न थे

चलेगे कैसे राह पर ,जिएगे कैसे

दिलो दिमाग अब कोई भेद न थे

Writer ~Kunwar Pushpendra singh (surera)


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