ख्वाब है तो रूक जरा
बता न इस दुनियां को
ये राह भी बताती है
गर मंजिल न मिले, तो तुझको कोसती ।।
कदम कदम पे रोकती
हर बार तुझसे पुछती
न जवाब दे, बस सवाल सुन
भुल जा तेरे बारे में ये क्या सोचती ।।
देख के तेरे जख्म को भरा भरा
फिर जुबां से कुरेदती
ध्यान रख न ध्यान दे
ये जज्बातो से खेलती ।।
बस थोड़ा धैर्य रख
एक क्षण भी डिग़ मत
जो आज जिसको गिराती है
वो कल उसको सलाम ठोकती ।
रचयिता ~कुं. पुष्पेन्द्र सिंह
Comments
Post a Comment