"जिदंगी लंबी नही बड़ी होनी चाहिए" ऐसी प्रेरणादायक कहानियां कई बार हमारे आस-पास भी मिलती है, ऐसी ही एक कहानी है अमर शहीद गार्डसमैन (Gdsm) जतन सिंह शेखावत की । इपका जन्म 16 जनवरी 1941 को माता राज कंवर, पिता ठा.सा. समंदर सिंह शेखावत के यंहा सुरेरा के एक सामान्य राजपूत परिवार में हुआ। चार भाईयो मे से आप तीसरे थे,सबसे बड़े भाई पुलिस और दुसरे बड़े भाई वन विभाग मे कार्यरत रहे ।
"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" अर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक गरिमामयी है। माता पिता से ये कथन आप कई बार सुन चुके थे, इसी कथन ने जन्मभूमि के प्रति कुछ कर गुजरने के भाव को दृढ़ किया । बचपन मे देश कि आजादी को देख चुके थे, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और महाराणा प्रताप जैसे राष्ट्रनायको के किस्से पिता श्री सुनाया करते थे और इसी प्रेरणा से आपने भारतीय सेना मे जाने का निश्चय किया परंतु तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियो के कारण मात्र 18 वर्ष कि आयु मे आपका विवाह श्रीमती उच्छब कंवर से हुआ और पारिवारिक जिम्मेवारीयो के कारण आपने लगभग एक वर्ष तक 61 cavelary (रसाला) मे सेवाएँ दी परंतु भारतीय सेना में जाने के दृढ़ निश्चय के कारण 61cavelary छोड़कर गांव आ गये और सेना भर्ती के लिये तैयारीयां शुरू की और 19 Jan 1961 को भारतीये सेना की ब्रिगेड़ ऑफ गार्डस रेजीमेंट मे भर्ती हुये |
आप भारत चीन युद्ध से पहले कुछ दिनो कि छुट्टी पर गांव आये, सीमा पर चीन कि ओर से युद्ध कि गतिविधियां बढ़ने लगी छुट्टीयां रद्द कर दी गई और सेना से वापस आने का वायरलैस आदेश आया, जाते वक्त आपने पत्नी से कहा "घर का ध्यान रखना मैं जा रहा हूं और शायद वापस न आऊं" इन शब्दो का अर्थ शायद एक वीरांगना ही समझ सकती है । चीन ने युद्ध कि शुरूआत कर दी हिंदी चीनी भाई भाई कहकर पीठ पर खंजर धौंप दिया । 18 nov 1962 को मातृभुमि कि रक्षार्थ हेतु जाबांज सपूत बहादूरी से लड़ते लड़ते अपना सर्वोच्च बलिदान देकर सदा के लिये अजर अमर हो गया ।
कुछ वक्त गुजरने के बाद दांतारामगढ़ थाने मे रेजीमेंट से आपकी शहादत का वायरलैस संदेश आया ये सुचना थानाधिकारी ने तत्कालीन सरपंच ठा. मान सिंह शेखावत को दी, और आखिर ये दुखदः समाचार पिता संमदर सिंह को मिला, जब पुत्र का सैन्य सामान वर्दी (बिंटा) आया तो समंदर सिंह उसे घर न ले जाकर गांव के बाहर दफन कर आये और 2/3 वर्षो तक ये खबर आपकी मां और पत्नी से छिपाकर रखी गयी पर सच कब तक छिपाकर रखा जा सकता था।
6 फरवरी 1981 को शहीद जतन सिंह जी छतरी की स्थापना की गई आस पास के गांवो के लोग हजारो कि संख्या मे इक्कठा हुये वीरांगना के लिये आपके सम्मान से बढ़कर कुछ नही था पैसो के लिये गहने तक बेच दिये। आज भी गांव में आपको एक लोक देवता (भोमिया) के रूप मे पुजा जाता है !
आपके दत्तक पुत्र दीप सिंह भी आपके प्रेरणास्वरूप भारतीय सेना मे सेवारत है।
पिढ़ीयो कि इस देशभक्ति को मेरा सास्वत दण्डवत् प्रणाम।
धन्य है वो माता पिता जिन्होने वीर सपूत को जन्म दिया !
------भारत चीन युद्ध 1962-------
चीन इलाके का लाभ उठाने में सक्षम था और चीनी सेना का उच्चतम चोटी क्षेत्रों पर कब्जा था । असम राइफल्स के पास पोसिंग ला (4,170 मीटर) पर एक प्लाटून पोस्ट था। 6 नवंबर को, जनरल पठानिया ने इसे मजबूत करने के लिए brigades of guards कि आपकी युनिट 5 गार्ड्स से एक पलटन को और भेजा ।
5 gaurds को थेंबग कूंच करने को आदेश दिया
17 नवंबर की सुबह थेम्बंग पहुंचे; दोपहर तक, उन्होंने खुद को गांव के ऊंचे मैदान में स्थापित कर लिया। चीनी दूर नहीं थे।गार्डस् के मोर्टार जवाब में खुल गए, लेकिन उनका समर्थन करने वाली पहाड़ की बंदूकें आग नहीं लगा सकीं क्योंकि फारवर्ड ऑब्जर्वेशन अधिकारी के साथ रेडियो सेट ने काम करने से इनकार कर दिया। लेकिन सामने चीन के 3 गुने सैनिक दिख रहे थे हालांकि, उनके मोर्टार और लाइट मशीन-बंदूक गोला बारूद लगभग समाप्त हो गए, वे स्थिति को लंबे समय तक रखने की उम्मीद नहीं कर सकते थे। ब्रिगेड कमांडर ने 5 gaurds को वापसी का आदेश दिया, लेकिन जैसा गार्डस का मोटो है पहला हमेशा पहला जो पीछे हटने कि इजाजत नही देता। रातभर guardsman हथियारो,रसद के अभाव होने पर "गुरूड़ हा हू बोल प्यारे " युद्धघौष के जोश के साथ आखिरी सांस मोर्चा संभाले रहे, इस कार्रवाई में चीनी को तीन से चार सौ सैनिको के नूकसान का सामना करना पड़ा 18 नवंबर 1962 को गार्डस के शहीदो की संख्या 162 हो गई, रात को बर्फिले तुफान के कारण संपर्क टुट गया जिसमें वीर सपूत गार्डसमैन जतन सिंह और लगभग 95 सैनिक बर्फिली पहाड़ियो मे हमेशा हमेशा के लिये मां भारती कि गोद मे समा गये , वीर सपूत गार्डसमैन जतन सिंह भी कभी वापस नही आये बहादूरी से लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हुये,
Writer : kunwar Pushpendra singh surera
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