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Cultural identity of india | mera bharat | indian civilization | old india

               -:मेरा देश भारत जितना मैने जाना :-

मेरा भारत महान ....लगभग हरेक के होंठो पर ये शब्द होता है ।वास्तव मे राजनेताओ के मुह से उनके भाषण अमिभाषण मे हम यह सनते और उनकि देशभक्ति का प्रमाण हम मान लेते है....लेकिन प्रश्न यह है कि क्या सच मे मेरा भारत महान  है । अगर हां तो क्यो ? इन छोटे से सवालो के जवाब पाने के लिए हमे और कुछ छोटे सवालो के साथ अतीत मे झांकना होगा ।

अब सवाल पर आते है क्या भारत महान था ? हां बिल्कुल ये हमारा इतिहास बतलाता है मगर हम इस इतिहास कि कुछ गलियो मे भटकना नही चाहते सीधे रास्ते से निकल जाते है...चलो छोडिए दिमाग मे हडकंप मच रहा होगा आज के नजरीय से देखे तो क्या भारत ,अंबानी, बिरला, टाटा और करोडपति व्यपारीयो या नेताओ से महान था ...नही भारत अपने मूल्यो से महान था ,भारत अपनी व्यवस्था से महान था मगर आज वक्त बदल चुका है महानता कि परिभाषा बदल गई है सफलता और महानता एक सी हो गई है ...आज तो अंबानी ,टाटा और नेता महान है मगर शायद हमारी परिभाषा मे महानता का आधार शायद अर्थ नही त्याग था ।हमारे यहां तो राजपाठ त्याग वनवास जाने वाला राम महान था ,असहनीय अत्याचार के बाद भी धर्म न बदलने वाले संत रविदास महान थे ,सब कुछ त्यागने वाले भगवान ,बौद्ध ,महावीर ,वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप महान थे ...परन्तु किसी के लिए अत्याचार और छल से एक बडे भूभाग पर फतेह करने वाले अकबर ,बाबर महान है ...हम एक नही है हमारे लिए महानता त्याग और मानवता है ...जैसा मैने कहा परिभाषा बदल गई है अगर आज देखे तो अमेरीका ,ब्रिटेन महान है क्योकि वो सम्पंन्न है मगर क्या दो देशो को लडाकर हत्थियार बेचने वाला, वायरस फैलाकर दवाईयो से कमाई के लिए लाखो लोगो की जान से खेलने वाले देश महान है ? जी नही लेकिन जो ताकतवर है वो सही है...। कहीं न कही अमेरीका बनने के चक्कर मे हमने अपने मुल्य छोड दिये है ...इस देश का रूढिवाद ,पुरातन होना ही इसकी महानता का आधार है ।आज  देखो हमारा साधू संत वाद हमारी सहिष्णुता हमारी आस्था को आडबंर बना दिया गया ।आज इंसानियत पर खतरा है क्या वो हमारी देन है नही वो इन्ही महान यून यूके कि देन है आपने हमेशा ही विज्ञान का उपयोग विनाश मे किया है ...क्या आवश्यकता थी अणू परमाणु बम बनाने कि जो आज आपके पास है वो हमारे पास कल था मगर हमने उपयोग जनहित मे किया मगर सच कहु तो वो जीवनमुल्य आज भी हमारी रगो मे है ।क्या हम निर्यात के लिए विनाशक नही बना सकते मगर हम अपनी सूरक्षा के लिए बनाये है आप के खतरो से निपटने के लिए बनाये है ...मगर आज य ह भी सच है कि आप अपनी उस विचारधारा से अपने आप को कायम नही रख सकते ।दुनिया बदल गई है धर्मनिरपेक्षता ,समभाव,वसुदेव कुटुम्बकम,सहिष्णुता ,अंहिसा से इस दुनिया से नही लड सकते ।

दुसरे स्तर पर गौर करे तो आधूनिकता और विकास के नाम पर यही खेल खेला जा रहा...हम रूढिवादी थे हम पेडो को पुजते थे उनको काटना पाप समझते थे मगर आज आप हमे माँडर्न बनाकर जब दुनिया की आपने ऐसी तेसी कर दी और जब विश्व उष्णन (ग्लोबल वार्मिंग)  का खतरा मंडरा रहा तो "save nature save water plant tree" धुमफिर कर तो वही आ गये न ।जब हमारे दादा परदादा जैविक खेती करते थे तो ये बुद्धिजीवी " गाय गोबर से फसलो का क्या होगा तुम गंवार हो ,यूरीया किटनाशको  उपयोग करो " और जब कैंसर बिमारीया होने लगी "आँर्गेनिट खेती करो इसे बढावा दो " अब देखे तो ये आँर्गेनिक हे क्या वही हमारी जैविक खेती । हम तुम्हारे बाप है आपको धुम फिर के वही आना पडेगा ... हमारे तंत्र मे शिक्षा चिकित्सा और न्याय सेवा का काम था और बिल्कुल मुफ्त था आपने क्या किया इसे व्यापार बना दिया और यही भ्रष्टाचार इन्ही क्षेत्रो मे सर्वोधिक है...आज जब बच्चे फाँसी खा रहे है तो "बच्चो का मुल्यांकन डिग्री पर नही होना चाहिए " अरे ! हमारे गुरूकुल तो पहले ही प्रयोगिक था वहा कोई कागजी मुल्यांकन नही था आज आप वही कही रहे हो बस दुसरे शब्दो मे " practical education" और हम मुर्ख टाइ बेल्ट लगाकर खुद को स्मार्ट बनाने मे लगे हे हमने अपनी संस्कृति छोड रहे हो ...दुनिया कुछ भी कहे आप जो है वही रहे आपने धोती पहनना ,तिलक लगाना मंदिर जाना छोडकर उन जैसा बनने का प्रयास कर रहे है...।और वो संस्कृत पढ रहे है और हम अंग्रेजी । आज सरकारे बेरोजगारी के नाम पर वैश्विकरण और आधूनिकरण का सहारा ले कर विदेशी कंपनियो को आर्थिक मदद करके हमे बंदुआ मजदूर बना रही है ।क्या यह सही है ? याद रखे आपसी एकता के अभाव मे हम मुगलो के गुलाम बने लेकिन एक कपनीं भारत मे व्यापार के लिए आई थी और हमको 200 सलो तक गुलाम बना लिया ।आज तो सैकडो कंपनिया है और आज भी अंग्रेजो केलगभग  35000 कानून चल रहे है ...विदैशी कंपनिया अपने उत्पाद का दाम तय कर सकती मगर धरतीपुत्र किसान नही ,आज भारत के औधोगकर्तो को जो कर देना पडता है वो विदेशी कंपनियाओ को आधा भी नही देना पडता है...सत्य यह है कि आज भी हम मानसिक गुलाम और लाचार है कपंनियो मे काम करते करते हमारी योग्यताए कही खो भी गई ।आज हमारे दैनिक जीवन मे काम आने वाले उत्पादो कि सूची बनाये और आप देखेंगे की 95% उत्पाद विदेशी है ...हम उन पर निर्भर है और हमारी निर्भरता हमे गुलाम बना सकती है। राजीव दिक्षीत जी ने कहा है " केवल स्वदेशी नितियो से ही देश सोने कि चिडीया बन सकता है"

अतः आपसे निवेदन है आँनलाइन सामान न खरीदकर अपने गांव के लोगो से खरीदे ...गांव के सुजा बाबा के हाथ कि जुतिया पहने...।शायद लोग कहेंगे कि तुझे इससे क्या तु अभी छोटा है ये तेरी काम की चीज नही बस मै इतना ही कहूंगा फाँसी पर झुलने वाला शहिद भगत सिंह भी सिर्फ 21 साल का था ....।

-एक कदम इंडिया से भारत कि ओर- 

गांव को गांव रहने दो शहर मत बनाओ

लेखक :- कुँ. पुष्पेन्द्र सिंह सुरेरा

Comments

  1. सच मे आपने भारत को समझने का सही प्रयास किया

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